कुंडली के ग्रहों का विश्लेषण (planetary analysis) जन्म तिथि से

कुंडली में ग्रहो से संबंधित सही फलकथन के लिए प्रत्येक ग्रह की विभिन्न स्थितियो की जानकारी अति आवश्यक होती है अन्यथा फलकथन में त्रुटि हो जाती है। कुंडली भाव में उपस्थित ग्रहो की उच्च,नीच शत्रु मैत्री स्थिति का भविष्य-फलकथन में ध्यान रखना चाइए। यदि पाप ग्रह है तो उसका अंश बल कितना है जिससे कुंडली में ग्रह के प्रभाव का पता लगाया जा सके। ग्रह आपकी कुंडली में शुभ अवस्था में है या अशुभ स्थिति में है या ग्रह मिश्र प्रवर्ति का है। ग्रह सम्बंधित सभी जानकारियों के साथ ही सही फलकथन किया जाता है। आप यहाँ पर अपने जन्म का समय भरकर नौ ग्रहो का संपूर्ण विश्लेषण प्राप्त कर सकते है। आप यहाँ पर अपने जन्म का समय भरकर ग्रहो की अवस्था, स्थिति, भाव, चरित्र, तात्कालिक सम्बन्ध, वर्गोत्तमा, योगकारका, गोचरस्थ आदि की सटीक जानकारी देता है। आप यहाँ पर अपने प्रत्येक ग्रह के बारे में जान सकते है।


आपके जन्म के समय से प्रत्येक ग्रह की स्थिति यहाँ जाने।


आपकी जन्म तिथि के अनुसार आपके ग्रहों का आंकलन यहाँ कुछ ही क्षणों में हो जाता है। सभी ग्रहों की गणना होने जाने के पश्चात ग्रह विश्लेषण के रिपोर्ट आपको तुरंत प्राप्त हो जाती है। सर्वप्रथम ग्रह किस भाव में स्थित है उस भाव का ग्रह स्वामी कौन है तथा दोनों ग्रहों के आपसी सम्बन्ध कैसे है देखते है। ग्रह की किस राशि में स्थित है ग्रह चरित्र क्या है पाप,मिश्र,शुभ आदि देखा जाता है और आगे की गणना प्रारम्भ की जाती है। आपको यहाँ केवल अपनी जन्म तारीख की आवश्य्कता होगी अन्य सभी ग्रह सम्बंधित आंकलन स्वतः प्राप्त होंगे।

ग्रह अवस्थाएं

वैदिक ज्योतिष में ग्रहो की कई प्रकार की अवस्थाओं के बारे में बताया गया है जिनमे ग्रहो की बालादि अवस्था होती है जो की फल कथन में सहायक है।

बालादि अवस्था जिस प्रकार मनुष्य के जीवन की ५ अवस्था होती है। जिस प्रकार मनुष्य के जीवन की 5 अवस्था होती है। ग्रह बलादि अवस्था 5 प्रकार की होती है।

  1. बाल अवस्था
  2. कुमार अवस्था
  3. युवा अवस्था
  4. वृद्ध अवस्था
  5. मृत अवस्था

ग्रह की बलादि अवस्थाये उसकी कार्य क्षमता व् प्रभाव को प्रकट करता है। ग्रह की बलादि अवस्था जितनी अच्छी होगी ग्रह उतना ही बलवान होगा व् व्यक्ति के जीवन में उसका शुभ-अशुभ प्रभाव उतना ही अधिक होगा। शुभ ग्रह युवा अवस्था में व्यक्ति के जीवन पूर्ण शुभ फल प्रदान करने में सक्षम होता है उसी प्रकार जब अशुभ ग्रह मृत या वर्ध अवस्था में होता है तो उसका अशुभ प्रभाव मनुष्य पर नगण्य मात्र रहता है जिससे मनुष्य अशुभ ग्रह फल से बच जाता है।

बाल अवस्था में ग्रह एक छोटे बच्चे के सामान ही होता है व् उसका ग्रह फल उसके भाव व् राशि के अनुसार होता है बाल अवस्था में ग्रह केवल 25 प्रतिशत फल प्रदान करता है।

कुमार अवस्था में ग्रह फल देने में सक्षम होता है व् लगभग 50 प्रतिशत फल प्रदान करता है।

युवा अवस्था में ग्रह अपना पूर्ण फल प्रदान करता है दशा आने पर अपने चरित्र व् स्थिति के अनुरूप पूर्ण सक्षम होता है

मृत अवस्था में ग्रह कुछ ही फल दे सकता है इस अवस्था में ग्रह एक निर्बल मनुष्य की तरह कार्य सक्षम होता है। मृत अवस्था में बैठा ग्रह नगण्य फल प्रदान करता है।

विषम राशि में सम राशि में
0-6 अंश तक बाल अवस्था 0-6 अंश तक मृत अवस्था
6-12 अंश तक कुमार अवस्था 6-12 अंश तक वृद्ध अवस्था
12-18 अंश तक युवा अवस्था 12-18 अंश तक युवा अवस्था
18 से 24 अंश तक वृद्ध अवस्था 18 से 24 अंश तक कुमार अवस्था
24 से 30 अंश तक मृत अवस्था 24 से 30 अंश तक बाल अवस्था

जाग्रतादि अवस्थाएं ग्रह की जाग्रतादि अवस्थाओं को कुंडली में उसकी राशि के आधार पर निकाला जाता है। जाग्रतादि अवस्थाएं तीन प्रकार की होती है।

  1. जाग्रत अवस्था
  2. स्वप्न अवस्था
  3. सुषुप्त अवस्था

जाग्रत अवस्था में ग्रह पूर्ण रूप से जाग्रत होता है व् सौ प्रतिशत अच्छे फल देने में सक्षम होता है जब ग्रह स्वराशि, मूलत्रिकोण या उच्च राशि में हो तो वह जाग्रत अवस्था में होता है।

स्वप्न अवस्था में ग्रह मध्यम बल का माना जाता है जब ग्रह मित्र या सम राशि में होता है तो यह ग्रह की स्वप्न अवस्था कहलाती है। स्वप्न अवस्था में ग्रह केवल पचास प्रतिशत फल ही प्रदान कर पता है।

किसी ग्रह के नीच या शत्रु राशि में बैठने पर वह ग्रह सुषुप्त अवस्था में होता है। सुषुप्त अवस्था में ग्रह फल देने में अक्षम हो जाता है व् उसका फल नगण्य होता है।

वर्गोत्तम ग्रह

वर्गोत्तम ग्रह का बल व् शुभता बढ़ जाती है लग्न कुंडली व् नवमांश कुंडली में यदि कोई ग्रह एक ही राशि में उपस्थित है तो वह ग्रह वर्गोत्तम होता है वर्गोत्तम ग्रह उच्च व् योगकारक के सामान ही फल प्रदान करता है और कुंडली में जिस भी ग्रह के साथ बैठा है उसको अपना शुभ प्रभाव व् बल देता है।

योगकारक ग्रह

योगकारक ग्रह कुंडली का अति शुभफलदायी ग्रह होता है। योगकारक ग्रह की दशा में व्यक्ति को उत्तम फल की प्राप्ति होती है। यदि जन्म कुंडली में कोई ग्रह केंद्र और त्रिकोण दोनों भाव का स्वामी है तो वह उस कुंडली में योगकारक ग्रह है।

अस्त ग्रह

सूर्य से एक निश्चित दूरी से अधिक निकट आने पर ग्रह अस्त हो जाता है। यदि कोई ग्रह सूर्य की युति में अंशो में अधिक निकट आ जाता है तो वह अपना तेज़ व् प्रभाव खो देता है और निष्फल हो जाता है। सूर्य और ग्रहो का अंश अंतर जितना कम होगा वह ग्रह उतना ही निष्फल होता जायेगा। उदाहरण के लिए किसी कुंडली में सूर्य मेष राशि में 1 अंश, बुध मेष राशि में 14 अंश पर व् शुक्र 25 अंश पर बैठा है तो सूर्य से बुध की दूरी केवल 2 अंश है जबकि शुक्र व् सूर्य का अंश अंतर (25-12) 13 है अतः बुध ग्रह इस कुंडली में अस्त ग्रह है जबकि शुक्र सूर्य से अधिक दूर होने से अस्त ग्रह नहीं है।

गोचरस्थ ग्रह

गोचरस्थ ग्रह हमारी कुंडली में शुभफल प्रदान करता है इसके विपरीत अगोचरस्थ ग्रह अशुभ होता है। कुंडली में यदि ग्रह स्व राशि, उच्च राशि या मूलत्रिकोण राशि में बैठा है तथा सूर्य से अस्त नहीं है किसी ग्रह युद्ध में नहीं है या हारा नहीं है व् 6,8,12 भावो का उस ग्रह पर प्रभाव नहीं है तो ऐसा ग्रह गोचरस्थ ग्रह कहलाता है।

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