शनि देव: कर्मफलदाता ग्रह की सम्पूर्ण जानकारी
शनि ग्रह कुम्भ व् मकर राशि के स्वामी है यह बृहस्पति के बाद हमारे सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह है। शनि व्यक्ति की स्पर्श इन्द्रि से जुड़ा है व् दु: ख का प्रतीक ग्रह है। शनि बहुत धीमी चाल से चलने वाला ग्रह है यह एक राशि में लगभग २.५ साल रहता है व् पूर्ण राशिचक्र का भ्रमणकाल २९.५ साल का है। एक जीवन यात्रा सूर्य से शुरू होकर शनि पर अंत हो जाती है अर्थात हर व्यक्ति के जीवन का अंत निश्चित है शनि को मृत्यु का देवता मानते है और यम की संज्ञा दी जाती है अतः कुंडली में शनि का सम्बन्ध व्यक्ति की आयु से माना गया है। शनि को भयानक व् पाप ग्रह के रूप में देखा जाता है परन्तु शनि दुःख में कारक होने के साथ आध्यात्मिक ज्ञान के सर्जक है। शनि की सामान्यतः एक बूढ़े आदमी के रूप में दर्शाया जाता है जिसके हाथ में कर्म-दंड है। भारतीय विद्वानों ने शनि की व्याख्या तामिसक प्रवृति, काला वर्ण, अगतिक रूप में की है तथा इसका स्थान मलबे का ढेर बताया है। वे शनि को चिथड़ों, टीले, पर्वतों और जंगलों से जोड़ते हैं — ये सभी विरक्ति, तप और एकांत के प्रतीक हैं। रोमन लोग शनि को कृषि के देवता मानते थे।
शनि अनंत और अचल काल के प्रतिनिधि हैं — जिनकी न तो कोई शुरुआत है, न अंत। वे समय और स्थान की सीमाओं से परे हैं। कई बार कर्मफल केवल दुख ही नहीं, बल्कि वैभव, मान-सम्मान और प्रसिद्धि भी ला सकता है इसी कारण, शनि दंडदाता होते हुए भी, उच्च पद व् सांसारिक सुःख प्रदान करते है। यह व्यक्तिगत और आध्यात्मिक विकास के लिए महत्वपूर्ण ग्रह है शनि का प्रमुख कार्य आत्मा को उसके मूल स्रोत की ओर लौटाना है। शनि वह अंतिम लाइन है जिसके पार जीवन ऊर्जा को जाने अनुमति नहीं है। शनि उन व्यक्तियों के लिए वरदान की तरह है जो ज्ञान का प्रकाश अपने जीवन में चाहते है जिससे वो इस भौतिक जगत से निकलकर मोक्ष को प्राप्त कर सके परन्तु जो अत्यधिक सांसारिक सुखो के इच्छा रखने वाले है उनके लिए निराश करने वाला ग्रह है। शनि को एक निर्दयी ग्रह के रूप में देखा जाता है परन्तु ये न्याय के देवता है इनका हमारी आयु से गहरा सम्बन्ध है शनि हमारी कुंडली में एक कठोर शिक्षक की तरह है जो हमें सख्ती से अच्छे कर्मो को करने के लिए प्रेरित करता है। कुंडली में शनि ग्रह ६,८,१०,१२ भावो में अच्छा माना जाता है कुंडली का ६ भाव क़र्ज़, शत्रु, बीमारी इत्यादि से जुड़ा होता है कुंडली के ६ भाव में शनि की उपस्थिति इन सभी विषयो में आपकी आसानी से विजय दिलवाती है इसी प्रकार ८ भाव आयु से सम्बन्ध रखता है ८ भाव का शनि व्यक्ति को दीर्घायु बनता है।
शनि ग्रह के बारे में बुनियादी जानकारी
मित्र ग्रह: बुध, शुक्र
शत्रु ग्रह: सूर्य, चन्द्रमा, मंगल
सम ग्रह: बृहस्पति
राशि स्वामी: मकर, कुम्भ
मूलत्रिकोण राशि: कुम्भ 1॰-20॰
उच्च राशि: तुला 20॰
नीच राशि: मेष 20॰
दिशा: पश्चिम
लिंग: महिला नपुंसक
शुभ रत्न: नीलम, जमुनिया
शुभ रंग: स्लेटी, गहरा नीला, काला-सा
शुभ अंक: 8, 17, 26
देवता: ब्रह्मा, शिव
वैदिक मंत्र: नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्। छायामार्तण्ड सम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्।
दान:लोहा, काली कीलें, काला कपड़ा, काले फूल,उड़द की दाल, काली गाय
मुख्य गुण:तर्क का ग्रह,दर्शन और ज्ञान का ग्रह,वैराग्य का प्रतीक ग्रह,नपुंसकता से जुड़ा ग्रह,कंजूसी का ग्रह,विनाशकारी शक्तियों का कारक,शीतल और हिम जैसा ग्रह,रहस्यमय स्वभाव वाला ग्रह,बंजर और निष्फलता का ग्रह
शनि की प्रकृति: न्यायप्रियता और कठोरता का संगम
शनि एक विशाल ग्रह है शनि का प्रमुख कार्य आत्मा को उसके मूल स्रोत की ओर लौटाना है। शनि: कठोर, निर्णायक और आध्यात्मिक रूपांतरण का ग्रह है। शनि इतना निर्णायक और गहराई से सक्रिय होता है कि उस पर कोई भी सांत्वनात्मक उपाय प्रभावी नहीं होता। शनि के द्वारा व्यक्ति जीवन में अवरोध, असहाय व् ऐसा प्रतीत होना जैसे कोई ऊर्जा उसके कार्यो को रोक रही है। शनि की चक्की धीरे-धीरे चलती है, पर बहुत निश्चित रूप से पीसती है। उसके प्रभाव से बचने के किसी भी प्रयास का अंत असफलता ही होता है। परंतु यदि कोई व्यक्ति शनि के मौलिक स्वभाव को समझ ले और उसके साथ सामंजस्य में जीवन जीने का प्रयास करे, तो उसका कष्ट तत्काल कम हो जाता है — विशेषकर भौतिक स्तर पर।
भौतिक दृष्टि से शनि को प्रसन्न करना लगभग असंभव है, लेकिन यदि कोई व्यक्ति सही आध्यात्मिक दृष्टिकोण अपनाता है, तो शनि के प्रतिकूल परिणाम भी कीमती वरदानों में बदल जाते हैं। शनि जब जीवन-शक्ति की चमक धमक पर गहरा छाया-पर्दा डालते हैं, तो व्यक्ति के भीतर एक गहन मनोवैज्ञानिक परिवर्तन आरंभ होता है तब उसमे असीम धैर्य आता है, और उनका कार्य निर्णायक होता है। उसे शांत करने के लिए अनेक उपाय सुझाए गए हैं — और कभी-कभी वे सतही रूप में सफल भी प्रतीत होते हैं। लेकिन शनि को वास्तव में प्रसन्न करने का सार इस बात में निहित है कि:
उसके प्रभाव की अनिवार्यता को स्वीकार किया जाए,
स्वयं को ईश्वर के चरणों में समर्पित किया जाए,
और अपने जीवन को आध्यात्मिक मार्ग की ओर उन्मुख किया जाए।
शनि कर्म दाता है जो व्यक्ति को उसके कर्म के अनुसार फल प्रदान करते है शनि के प्रभाव में व्यक्ति के विचारो में ऐसे बदलाव होते है जिससे उसका सांसारिक विषयो से मोहभंग होना शुरू हो जाता है भले ही शनि उसके जीवन में स्पष्टतः लाभकारी परिणाम दे रहे हो कहावत के अनुसार यहाँ अंगूर खट्टे नहीं है बल्कि उसका अंगूर से मन ही हट चूका है। व्यक्ति शुरुवात में सांसारिक सुखो में पाने के लिए लालची और उत्सुक होता है परन्तु शनि के प्रभाव वह इन सुखो का पूर्ण सुख नहीं ले पता यह उसके लिए कष्टदायी व् निराशापूर्ण है लेकिन यह मोहभंग ही व्यक्ति को जीवन की असली सच्चाई से रूबरू करता है। भ्रम धीरे-धीरे टूटने लगता है। जीवन से मोहभंग हो जाने पर व्यक्ति खुद को ठगा हुआ, निराश और दुखी महसूस करता है, और अंततः वह स्वयं को पहचानता है। इस परिवर्तन के प्रभाव में, व्यक्ति परम सत्ता के अनिवार्य प्रभाव को स्वीकार करना शुरू करता है, और तब से उसकी वापसी की यात्रा — अपने अंतर्मूल स्रोत की ओर — प्रारंभ होती है।
शनि की कुंडली में स्थिति शुभ और अशुभ प्रभाव
कुंडली के किसी भी भाव में शनि की उपस्थिति उसके शुभ परिणामो के लिए अनुकूल नहीं होती फिरभी ३ और 11 भाव में कुछ बेहतर होती है ३ भाव में व्यक्ति के भाई-बहनो पर थोड़ा प्रतिकूल प्रभाव जरूर होता है पर उसे सांसारिक कर्म में अत्यंत चालक बनाती है ११ भाव में शनि होने पर व्यक्ति के जीवन में धन का प्रवाह बना रहता है, भले ही उसका कार्य सामाजिक तोर पर स्वीकार करने योग्य न हो। जब शनि नवम भाव में होता है, तो व्यक्ति में परंपरागत धर्म के प्रति एक प्रकार की विरक्ति देखी जाती है। वह स्थापित धार्मिक मान्यताओं और परंपराओं को आंख मूंदकर स्वीकार नहीं करता, बल्कि अपने अनूठे विचार और अपारंपरिक दृष्टिकोण के माध्यम से धर्म और विश्वास को नवीन रूप देने का प्रयास करता है।
शनि का चंद्रमा पर प्रभाव अंततः अच्छा नहीं है कुंडली में शनि व् चंद्रमा का किसी भी प्रकार का संबंध मानसिक उन्माद, तनाव व् यहाँ तक की स्वयं को हानि पहुंचाने की भावना तक उत्पन्न कर सकता है। चद्रमा से देख़ने पर यदि शनि कुंडली में १२ या २ भाव में हो तो या एक साथ हो तो यह संबंध हितकर नहीं है व् यदि इसी प्रकार का शनि-सूर्य से कुंडली में सम्बंदित है तो व्यक्ति के लिए अधिक परेशानी वाला है। कुंडली में मंगल के साथ शनि की युति अच्छा नहीं है ये दोनों ग्रह परस्पर विरोधी ऊर्जा स्तरों पर सक्रिय रहते हैं। मंगल व्यक्ति को कार्य करने के लिए उत्साह और ऊर्जा प्रदान करता है व्यक्ति अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए तत्पर रहता है वही शनि व्यक्ति में आलास, ठंडा और कार्यो के प्रति ढिलाई बरतने की आदत देता है जो धीरे धीरे उसे लक्ष्य से दूर कर देती है।
यदि कुंडली में शनि ग्रह शुभ स्थिति में हो तो व्यक्ति विवेकशील, मितव्ययी होने के साथ अत्यंत धैर्यवान और परिश्रमी होता है उसमे निष्ठा,स्थिरता, दृढ़ता आदि गुण देख़ने को मिलते है।
अशुभ स्थिति में व्यक्ति आलसी और कार्यो में सुस्त होगा व् वह हर कार्य में विलम्भ करता है ऐसे व्यक्तियों में अवसाद उत्पन्न होने संभव अधिक होती है।