शुक्र ग्रह की विशिष्ट जानकारी वैदिक ज्योतिष में
शुक्र ग्रह जीवन में आकर्षण, प्रेम और भोग का कारक है। शुक्र एक शुभ ग्रह है जो हमेशा आनंदमयी व् अच्छे परिणाम देने की कोशिश करता है। काल पुरुष की इच्छाएं शुक्र से दर्शाते है। दुसरो की परवाह, व्यक्ति में विपरीत लिंग में प्रति आकर्षण, अपने शरीर की साज-सज्जा का ध्यान व् प्रेम करने और प्रेम पाने की इच्छा आदि का शुक्र ग्रह से घनिष्ट सम्बन्ध है। शुक्र को कामरूप से जोड़ते है जो इच्छाओ व् अभिलाषा के वाहक है। शुक्र सबसे चमकदार ग्रह है इसे सूर्य के साथ उगते व् अस्त होते देखा जा सकता है अतः आमतौर पर इसे "प्रातः तारा" और "सायं तारा" कहा जाता है। व्यक्ति का शुक्र के द्वारा अंतर्ज्ञान चमकता है जो उसे एकता, सौहार्द व् इच्छापूर्ति की भावना की ओर ले जाता है। शुक्र ग्रह का ललित कलाओं से गहरा रिश्ता है, कलाकार की कला में प्रवीणता, सटीकता व् गहनता शुक्र की ऊर्जा का ही असर होता है अतः जितनी अधिक ऊर्जा का प्रवाह कलाकार के जीवन में शुक्र का है उसकी कला में उतना निखार रहेगा।
शुक्र ग्रह वृषभ और तुला राशियों के स्वामी है हमारे शारीरिक अंगो में आंखे, प्रजनन तंत्र, त्वचा, गला, ठोड़ी, गाल और गुर्दे शुक्र ग्रह के अंतर्गत आते है और यदि पेशे की वार्ता करे तो संगीतकार,फिल्म निर्माता, अभिनेता, परिवहन कार्यकर्ता, जौहरी और दर्जी आते है शुक्र ग्रह इच्छाओं को पूर्ण करने की लालसा प्रदान करता है जिससे पृथ्वी पर जीवन में सामंजस्य स्थापित हो सके। शुक्र की मूलभूत विशेषता व्यक्ति की आतंरिक क्षमताओ का प्रकटीकरण, जीवन को आनंदमय बनाने का शौक़, दूसरों को खुशी और आनंद देना, भिन्न विचारों को जोड़कर हर स्थिति में भगवान की सुंदरता और मेल-जोल को बढ़ावा देना। इस प्रकार की भावनाएं व्यक्ति को जीवन के विभिन्न पहलुओं से अवगत कराती है। शुक्र यह भी दर्शाता है कि कितने वाहन स्वामित्व में हैं और कितनी संपत्ति एकत्र की गई है।
शुक्र ग्रह के ज्योतिषीय गुण
मित्र ग्रह: शनि, बुध
शत्रु ग्रह: सूर्य, चंद्र
सम ग्रह: मंगल, बृहस्पति
राशि स्वामी: वृषभ, तुला
मूलत्रिकोण राशि: तुला 0॰-15॰
उच्च राशि: मीन 27॰
नीच राशि: कन्या 27॰
दिशा: दक्षिण-पूर्व
लिंग: महिला
शुभ रत्न: हीरा
शुभ रंग: गुलाबी रंग, क्रीम
शुभ अंक: 6,15,24
देवता: इन्द्राणी,लक्ष्मी
वैदिक मंत्र: हिमकुंद मृणालाभं दैत्यानां परमं गुरूं। सर्व भास्त्र प्रवक्तारं भार्गवं प्रणमाम्यहं।।
दान: घी, कपूर, दही, चाँदी, चावल, चीनी, सफेद कपड़ा
मुख्य गुण: शुक्र भौतिकता का काव्यात्मक ग्रह है यह भोग-विलास, देह सुख, ऐश्वर्य, आभा, तेज, वीर्य, क्रीड़ा, कला और संस्कृति का प्रतिनिधित्व करता है।
शुक्र ग्रह की विशेषताएँ और ज्योतिषीय प्रभाव
शुक्र को असुरो का गुरु माना जाता है। शुक्र व्यक्तियों में एकता और एकता की इच्छा पैदा करता है। ज्योतिष की दृष्टि से, शुक्र ग्रह मनुष्य के महत्वपूर्ण द्रव्य और प्रजनन प्रणाली के रोगों से जुड़ा हुआ है। शुक्र ग्रह महिला व् पुरुष में बीच के आकर्षण को प्रभावित व् नियंत्रित करता है। हिन्दू ब्राह्मण ग्रंथो में शुक्र ग्रह को प्रायः विज्ञानमय कोष और मनोमय कोष से जोड़ा गया है। शुक्र ग्रह सांसारिक रिश्तो में आध्यात्मिकता का बहाव प्रदान करता है। ज्योतिषी कुंडली में शुक्र की स्थिति देखकर यह अनुमान लगा सकते है की व्यक्ति किस प्रकार की जिंदगी जियेगा। मजबूत शुक्र के व्यक्ति का मुख्य स्वभाव सद्भाव है इसके प्रभाव में वह सम्पूर्ण ब्रह्मांडीय सृजन से जुड़ा महसूस करता है व् अहम् का त्याग कर पूर्णता को प्राप्त करता है।
शुक्र ग्रह को सूर्य-चंद्र-बुध तीनो के व्यक्तिपरक क्षेत्र से संबधित एक कड़ी माना जा सकता है जो इनकी अत्यधिक दिव्य आध्यात्मिक ऊर्जा को समझकर उसे सही ढंग से धरती पर सर्जन की प्रक्रिया के लिए उपयोग में करता है। शुक्र असुरो के गुरु है असुर देवताओ की भाति स्वर्ग में नहीं रहते है शुक्र के प्रभाव में व्यक्ति धन महिलाओं का सामान, पशु, संगीत और नृत्य, चांदी, रेशम और कविता जैसे कार्यों से अर्जित करता है।
शुक्र जीवन के सर्जन की ऊर्जा को दर्शाता है यह प्रकृति की सूक्ष्मतर शक्तियों के प्रति संवेदनशील है हर प्रकट रूप में ईश्वरीय उद्देश्य को पहचानता है यह रिश्तों में मधुरता, जीवन को आनंद से जीने की गुंज़ाइश व् कलात्मक प्रकृति प्रदान करता है। शुक्र व्यक्ति में रचनात्मकता का प्रसार करता है इसकी गतिविधियाँ विकास की दिव्य योजना और आत्मा के क्षेत्र में निहित हैं, लेकिन इसका प्रभाव भौतिक जीवन में दिखाई देता है।
शुक्र का कुंडली में प्रभाव और भूमिका
शुक्र के प्रभाव में व्यक्ति जीवन का आनंद लेता है व् अपने व्यक्तिगत विकास पर अत्यधिक जोर देता है व्यक्ति की कुंडली में शुक्र की स्थिति देखकर उसकी संपत्ति, वाहन, गहने, कपडे, गीत-संगीत, खुशियाँ, बीवी, परफ्यूम, घर, कला, स्त्री, खेल, प्रतिष्ठा, सामाजिक स्थिति, आकर्षक भाषण, विवाह, उत्सव इत्यादि अनुमान लगया जा सकता है। व्यक्ति की सांसारिक इच्छाएं शुक्र ग्रह से बहुत गहराई से जुडी है।
शुक्र अन्य ग्रहो पर विशेष प्रभाव डालता है ठीक इसी प्रकार अन्य ग्रहों से काफी प्रभावित भी होता है। शुक्र ग्रह का कुंडली में शनि व् राहु से बना सम्बन्ध इसकी प्रकृति को काफी नुकसानदेह है उसकी मूल प्रवृत्ति दूषित और अप्रिय हो जाती है। शवों के जलाने के घाटो के भगवान शिव है जिन्हे ज्योतिष में शनि ग्रह द्वारा प्रदर्शित किया जाता है शुक्र का सम्बन्ध उनके साथ मधुर है।
सूर्य व् शुक्र के साथ कुंडली में बैठने पर शुक्र अस्त हो जाता जिससे वह सांसारिक विषयो में कार्य नहीं कर पता यद्यपि उसकी आध्यात्मिक संभावनाएं बढ़ जाती है। बुध और शुक्र का सम्बन्ध सामंजस्यपूर्ण है दोनों अपनी स्वाभाविक प्रवृत्ति के अनुसार फल प्रदान करते है। शुक्र का मंगल के साथ होना व्यक्ति को अत्यधिक उत्साह व् आतंरिक शक्ति प्रदान करता है व्यक्ति का आकर्षण अपने से विपरीत लिंग के लिए चरम पर होता है। जब चंद्रमा के साथ शुक्र होता है तो मन को बहुत शांति मिलती है, लेकिन अगर चंद्रमा सूर्य के बहुत पास हो, तो वह भावनाओं की गहराई को कमजोर कर सकता है, जो इस योग में सामान्यतः अनुभव होती है।
जब ग्रह उत्तम भाव में स्थित होता है, तो व्यक्ति में करुणा, सौहार्द, आकर्षक व्यक्तित्व, सौंदर्यबोध, सजगता, विवाह में शुभता, उदात्तता, हर्षपूर्ण स्वभाव, कलात्मक रुचि, समग्र सफलता तथा समाज में लोकप्रियता की स्पष्ट छाप देखने को मिलती है।
वहीं यदि ग्रह दूषित या नीच दशा में हो, तो आलस्य, विषयाकर्षण, भोगविलास, व्यवहार में अतिरेक तथा भावनात्मक असंतुलन की प्रवृत्तियाँ प्रबल हो जाती हैं। इससे संबंधित रोगों में नेत्र विकार, अंडाशय की समस्याएँ, त्वचा विकृति, शोथ (सूजन) एवं रक्त की कमी (एनीमिया) देखी जा सकती है।